हरडहुवा मेरिक तिह्वार हो । बरसमे एक चो मनाजाइठ । इ तिह्वार के सुरुवाठ लेवा हुइठ । जोन बरसमे एकचो एक मुठ्ठाले बोरा फरैना धान खेतिक कर जाइठ ओहे लेवा से।
हाँ इहे सत्य वाट हो । सबसे रमाइलो लग्ना खेति फेन हो । इ खेति करेबेर सजना गित सुने नै मिलिठ कना ते बाटैने हो । पूरा चैनारे रहठ खेतवा, रेउ रेउ रेउ रेउ मनै केटवम भरलरठै । थारु केउ मेरुवा बाँढठ टे जन्निन बियार उखरठैं । हरोहिया लेवार बनैने सजना गित गैठैं ते एक ओर बियार उखरने जन्निन फेन सजना गित मचैले रठैं । गाँउक मनै सल्हा पारके मरुवामे ढुरिया पुजा पुजके खेतिम भिरल रठैं । केउ ओकर ते केउ ओकर लगओइठैं । अस्टके सालभर खाईपुग्ना खेति कुछडिनमे सेकडर्ठैं । जब इ खेति सेक्ना हुइठ उहेबेला हरडहवा खेल्ना चलन बा ।
हरडहुवा खेल्लेसे खेतिफेन संपरल रहठ कना आजा पुर्खनके बिस्वास बतिन । हरडहुवा एक किसिम के रमैना खेल हो । हिला पानी ढुर खाके दुख कस्ट सहके साल भर खैना खेति सेकल उपलक्ष्यम धान लगुइया, हरोहिया ओ कोन्वा कोरुइया सबजे हिला पानीले फचकिक् फचका करने ओ घरगोसियक गोर पकरके घिसैना करठै । असिके लेवार से सुरु हुइल हरडहुवा, खानपिन करके ओराइठ । गाँउक सबजे खेति सेक्के, गाँउम सुवर मारके अपन चेलिबेटिन, नाट पाटन बलाके खओइना ओ नाचकोर करना चलाउ फेन बा । असिके हरडहुवा के फेन बिडाइ हुइठ । ओराइल ।
.......✍️ संगम चौधरीI
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