थारु समुदायमे गुरहि
हरयाली वसन्त रितु के संगे थारुनके पहिल पुजा हरेरि के पाछे थारुनके पहिल तिह्वार गुरहि के संगे थारु समुदायमे बुरहाइल से लेके छोट-छोट लौन्डिन मे एकठो खुसियालिक् बहार लानडेहठ । गुरहि कलक छोट-छोट टेम्हरि लागल फुला हे संकेट करजाइठ् । कौनौ फेन फारा लग्ना फुलाहे गुरहा गुरहि (टेम्ह्रि) फुला कहिजाइठ । अस्टके गुरहि तिह्वारमे फेन छोट-छोट पुटलि, झिंगौरा के जस्टे डेख्नामे मनैके अकार जस्टे आँखि, मुह रहल डुल्हा डुल्हि संपराइहस संपराइल, मुसन्डा ओ मुसन्डि बनाके लुगराले सेहेरके बनैले रठैं । उहे गुरहि ओ गुरहा हे एकठो डोख अथवा रोग बिरोग भगैना प्रटिक मानके गाउँक छोर चौराहा मे अस्रैना ओ उहे संगे गाउँ घरक डोख अथवा रोग दुख बेराम निकरके जाइठ कना आजा बुडुनके पालासे थारुनमे इ बिश्वास रहल बा ।
जस्ते देश ओस्टे भेस कहेहस ठाउँ अनसार इ तिह्वारहे मनैना चलाउ फेन फरक फरक देख्जाइठ ओ सुनजाइठ । अब्बक पुस्टामे टे इ तिह्वार के बारेम मजासे जानकारि टक नैहुइन । कत्रा गाउँमे इ लोप हुसेकल देखापरठ । अपन तिह्वारहे हे फेन चिन्हेनै लागल हुइठ । ओ देखा सिखि अपन तरिका से औरे तिह्वार मनाइ भिरल देखा परठ ।
गुरहि तिह्वार मनैना सामा, जुन ओ कुछ रित अनसार करे पर्ना रहठ मने आप अपन मन अनसार मनाइठ देखजाइठ् । पुर्खानके पालामे गुरहि पिटना सोटा रेंगाइल कसुङ्गाके बनैले रहिठ ओ सारा गाउँक एक जुटहोके भलन्सा, महटौवा चकरुवाक् अगुवाइमे कार्यक्रम समापन करिठ । गोरु बछरु मुरघि चिंग्ना बसेरा लेना जुन गाउँक् अघरिया , चौकीदरवाक अवाइमे गाउँक डाडुभैया ओ डिडीवहिनिया, छैला छैलिन गरगहना, लावा–लावा लुगरा लगाके टठियामे मेरमेराइक भुजा, डुब्बा घाँस, रंगी बिरंगी लुग्रक गुरही-गुरहा लेले गाउँक् चौराहामे गाउँभरिक लउण्डा–लउण्डी ओ बुह्राइल मनै गुरहीक भुजा मागक लाग गौहुराइल रनाकरिट ।
गुरहि तिह्वार मनैना सामा, जुन ओ कुछ रित अनसार करे पर्ना रहठ मने आप अपन मन अनसार मनाइठ देखजाइठ् । पुर्खानके पालामे गुरहि पिटना सोटा रेंगाइल कसुङ्गाके बनैले रहिठ ओ सारा गाउँक एक जुटहोके भलन्सा, महटौवा चकरुवाक् अगुवाइमे कार्यक्रम समापन करिठ । गोरु बछरु मुरघि चिंग्ना बसेरा लेना जुन गाउँक् अघरिया , चौकीदरवाक अवाइमे गाउँक डाडुभैया ओ डिडीवहिनिया, छैला छैलिन गरगहना, लावा–लावा लुगरा लगाके टठियामे मेरमेराइक भुजा, डुब्बा घाँस, रंगी बिरंगी लुग्रक गुरही-गुरहा लेले गाउँक् चौराहामे गाउँभरिक लउण्डा–लउण्डी ओ बुह्राइल मनै गुरहीक भुजा मागक लाग गौहुराइल रनाकरिट ।
गाउँक् अघरिया गुरही बनाइल चिरकुटमे गाँठ पारके गुरही गुरहा ठठैना अह्राइल अनसार सक्कु लौंन्डा लर्का अपन रंगीबिरंगी सोंटाले ठठैना ओ घुघरी (खैना भुजा ) मगना काम कर्ठैं ।असिक गुरही ठठैलेसे गाउँघरमे रहल डोख भागठ ओ गाउँहे दुःखसे छुटकारा मिलठ् कना आजा बुडुनके पालासे हमार थारु समाजमे गहिंर जनविश्वास रहल देखापरठ । असिके गाउँ घरेम नुकलरहल डोख रोग बिरोगहे मारपितके भगाइल खुसयालिम अपन लानल सक्कु गौह्रियाइल लर्कापर्का ओ बुरहाइल मनैन मेरमेराइक भुजा जस्टे– मकैक भुजा, चना, केराउ, भरठर आदि के भुजा सक्कुहुन एक–एकचुटि बँट्टि जैठैं।
असिके ठठाइल गुरहि गुरहा हे घरक डुवारीम् झुलालैना ओ बाँटके बचल भुजा गुडा घरक छपरम छिट्कैसे घरक डोख भग्ना ओ घरेम रहल साँप गोजर फेन निकरके भग्ठै कना थारुनमे आजा बुडुनके पालासे विश्वास रहल देखापरठ् ।
असिके ठठाइल गुरहि गुरहा हे घरक डुवारीम् झुलालैना ओ बाँटके बचल भुजा गुडा घरक छपरम छिट्कैसे घरक डोख भग्ना ओ घरेम रहल साँप गोजर फेन निकरके भग्ठै कना थारुनमे आजा बुडुनके पालासे विश्वास रहल देखापरठ् ।
पहिले आजा बुडुनके सावन (महिना)मासके अँधरिया पाछे ओजरियाके पाँचवा रोज इ तिह्वार मनैना करिठ कलेसे आबक पुस्टा मे नेपाली पात्रो अनसार इ तिह्वार ठिक्के नागपञ्चमी के दिन परठै । एकर प्रभाबसे थारुनहे अलमलमे परले बा, ओ गुरहि मनाइक छोर नागपञ्चमी मनैना ओर लागल बटै । जेकार कारन थारुनके पहिचानमे भारि असर परता । जाति अनसार तिह्वारके नाउ ओ मनैना चलाउ फरक रलेसे फेन बिश्वास चाहना सबके एक्के देखा परठ । सब जहन सान्ति, उद्धार, मुक्ति चाहल बा, ओकरे लाग सबजे भिरल देखापरठ । पुजापाट, तरतिह्वार हर जाति जसिक मनैलेसे फेन अपन अपन जातिनके पहिचान बचैलेसे भलो हुइ जस्टे लागठ ।
थारुनके इ गुरहि मनैना पुरान चलाउ बिट्कोरके हेरेबर असिन लागठ कि बरष भरिक गाउँ घरेम रहल रोग बिरोगके प्रतिक गुरहि ओ गुरहा बनाके ओइनहे गाउँम से नाकासी कर्ना ओ गाउँ घरेम सान्ति खुसि भित्राइल उपलक्ष्य रमैना ओ खानपिन करके राहरंगि करना चलाउ अभिन टौगर देखापरठ । इ तिह्वार रोग बिरोग ओ खैन पिना किल नैहोके थारुनके मुख्य पहिचान भेस पहिराउ ओ जाति चिन्हैना मे भारि भुमिका बतिस । इ तिह्वारमे थारु तिरिया (जन्नि)जाति अपन घरेम रहल सक्कु सिँगार मे निकरल रठैं । इहे बेला थारुनके अासलि पहिराउ हेरेमिलठ् । थारु जातिनके इ तिह्वार भारि नै रलेसे फेन सब्से पहिलामे जरुर पारठ् , ओहे मारे थारु सबजे अपन पहिला तिह्वार गुरहिहे सिँगार पटार करेपरना जरुरि देखारठ् । इ तिह्वार हे बिना थरुवक राण जन्निहस नै छोर्ना हो, काहेकि इ तिह्वार धिरेधिरे लोप हुइटि गैल देखापरटा । तबेमारे थारु समाजके आँखी उघ्रना जरुरी बिल्गाइठ नाहि कि, जात्तिके पावर फुल चस्मा लगाके हिरगरसे झक्याइ पर्ना बा । .
.....✍️ संगम चौधरी
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