आत्मिय संघर्या बि०
सर्वप्रथम टे हृदयसे नै धन्यवाद! के संगे अबिरल मैया, छोट् जिन्गीक लम्मा सम्झना अो लाखौ लाख शुभकामना के पहुरा केवल टुहार लाग स्विकार करहो ना.......
संघर्या टुँ अपन सम्झना रुपी सोनौर डायरिमे मोर मनक् भावना लिख्ना मौका डेलक मे हृदयसे आभार ब्यक्त कर्ना चाहटुँ ।
मित्र खास कौनो महगा उत्कृस्ट शब्द नै रलेसेफेन सम्बोधन कर्ना उहे पुराने किट लागे लागल शब्द हुँकन हजुरके अटोम् मुतुक भित्टर घच्घच्यईरहल भावनाहे प्रस्फुतित करटुँ । हो मित्र सायड मानव जिन्गी कलक अस्टेहे हुइ ना कबु हाँस्ना कबु रोइना, कबु छाहिँ टे कबु घाम । सोचल जस्ते नै रहट तथापि इ कथोर जिन्गीके यात्रामे जसिक तसिक बाङ्ग टेंह्र डग्रिम ढिरे ढिरे आपन पईला सारे परट् ।
दु:ख हे उक्वार लेके नेंगे पर्ना रहट् । कबु शिखर ओर चलाइल परगा पठ्रम लरके उछ्टे पुगट् । उहे बेला अपन हे सन्टवाना डेटि बैठ्ना विवस होजाइट् । मित्र जिन्गीक् यात्रा कहुँ कि प्रकितिके नियम कहुँ मनै जलम लेके अइलेसे अनेक घटना ओ परिस्थितिके सामना करे परट काहुँन । हाँ मित्र कहुँ ओजरार टे कहुँ अंधर अो कहुँ शुशीक् बहार टे कहु दु:ख ओ वेदनाके झरी उ सक्कुहुन एकसंगे सहटि समना कर्कि अागे जैना जिन्गीक् बादद्यता हो काहुन ।
मित्र विध्यार्थी जिवनके मजा पक्षहे उक्वार लेहो ओ कथम कदाछछित हमार भेत हुइकलेसे एक शब्द हाँसके बोलडेहो जिवनके हरेक यात्रामे संघर्सके फुला फुलैटि अापन अपन इच्छा कर्तब्य चाहना आकक्षा जस्ते स्वच्छ भावनाहे सिञ्चित कर्टि आपन गन्तब्ययात्रा मे हरपल पुगहो कटि हार्दिक शुभकामना डेहटुँ ।
घाम छाहिँ हो जिवन ।
घाम छाहिं हो मानव जीवन एकरोज डिबे परठ् कटि ।
बाह्रमासे फुल फेन एकरोज अइलाइ परठ् कटि ।।
यात्रै यात्रामे विट्टिरहल संघर्षसिल जिन्गी,
इपार उपार पुगक् लाग किस्टिम टर्के परट कटि ।
मठमन्दिर जाके पाठपुजा कर्के किल नै हो धर्म,
मानवताके भाव बोक्के औरेक उपकार करे परठ् कटि ।
रोजे रोज सतकर्ममे लाग्टि लाग्टि नै
सारा विश्वभर सुबासै सुबास छिटे परठ् कटि ।
मैयाँ नै मैयासे अंटकल सारा दुनिया बा इहाँ, साच्चा अमर प्रेम सक्हुनके हृदयमे भरे परठ् कटि।
जिन्गिक परिभाषा
सुखै सुखके उल्लासमय मत्र नै हो जीवन,
दु:खै दु:खके सागरमय समुद्र फेन हो ।
हाँसि ओ उमङ्गके बहार किल नै हो जीवन
आँशु ओ आँशुके झरि फेन हो हो ।
मिलन ओ खुसिके संगम किल नै हो जीवन
बिछोड ओ बिछोडैके मरुभुमि फेन हो ।
मै टुँर आत्मिय संघर्या
तुल्सी चौधरी
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