मनके आवाज
गजल - १८
पसना चुहाके शरिर मसे साहुनके भर्वा बोक्ना काजे ।
अढिया बटैया लगाके आनक वारि जोट्ना काजे ।।
जत्रा मेहनट कर्लसे फे आढा पटे खैना मिलठ ,
साँझ बिहान सड्डभर साहुक गारि खैना काजे ।
भाषा कला ओ संस्कृटि हमार थारुनके पहिचान हो,
विदेशि संस्कृटि अगालके आपन चाहि मस्ना काजे ।
मजा धर्म करक् लाग परोपकार हम्र करपरथ ,
आनक दु:ख परल बेला भलाई खाके हस्ना काजे ।
पसना चुहाके शरिर मसे साहुनके भर्वा बोक्ना काजे ।
अढिया बटैया लगाके आनक वारि जोट्ना काजे ।।
अशोक रस्टेह्वा...✍️
एक टिप्पणी भेजें
0टिप्पणियाँ